सम्यक दर्शन के आठ अंग : 8. प्रभावना
प्रभावना
प्रभावना का अर्थ होता है: इस भांति जीयो कि तुम्हारे जीने से धर्म की प्रभावना हो। इस ढंग से उठो-बैठो कि तुम्हारे उठने-बैठने से धर्म झरे। और जिनके जीवन में धर्म की कोई रोशनी नहीं है, उनको भी प्यास पैदा हो। तुम्हारा चलना, तुम्हारा व्यवहार, तुम्हारे जीवन की शैली–सभी प्रभावना बन जाए। प्रभावना–धर्म की, सत्य की।
तुम एक ज्योतिर्मय व्यक्तित्व बन जाओ कि जिनके भी पास ज्योति नहीं है, उनको भी ज्योति होनी चाहिए! और यह जीवन–अंधेरे का भी क्या कोई जीवन है, ऐसा भाव उठे! तुम जहां से गुजर जाओ, वही लोगों के हृदय में एक लहर दौड़ जाए। और लोगों का जीवन सत्य की तरफ उन्मुख हो।
तुम्हारे होने के ढंग से ही उनको उपदेश मिल जाए। तुम्हारे होने के ढंग से उनको आदेश मिल जाए। तुम्हारा होने का ढंग ही उनको पकड़ ले और एक नये नृत्य में डुबा दे और एक, एक नई मस्ती से भर दे! तुम्हारा होना ही, तुम्हार अस्तित्व मात्र, तुम्हारा उनके पास से गुजर जाना: एक नए जगत का प्रवेश हो जाए उनके जीवन में! तुम्हारा उनके पास आ जाना, तुम्हारा सत्संग, तुम्हारी मौजूदगी, उन्हें रूपांतरित कर दे! उनकी आंखें उस तरफ उठ जायें जहां कभी न उठी थीं। प्रभावना! तुम उन्हें प्रभावित भी करने की चेष्टा मत करना। तुम्हारा होना प्रभावना बने! वे प्रभावित हों: तुमसे नहीं–धर्म से; तुमसे नहीं–सत्य से; जो तुममें घटा है–उससे; वह जो पारलौकिक तुममें उतरा है–उससे।
ये आठ अंग स्मरण हों तो सम्यक दर्शन निर्मित होता है।
यह लेख जिन सूत्र पुस्तक से लिया गया है।
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