सम्यक दर्शन के आठ अंग : 4. अमूढ़दृष्टि
अमूढ़दृष्टि
दुनिया में तीन तरह की मूढ़ताएं हैं, भ्रांत दृष्टियां हैं। एक मूढ़ता को वे कहते हैं, लोकमूढ़ता। अनेक लोग अनेक कामों में लगे रहते हैं, क्योंकि वे कहते हैं कि समाज ऐसा करता है; क्योंकि और लोग ऐसा करते हैं। उसको कहते हैं: लोकमूढ़ता। क्योंकि सभी लोग ऐसा करते हैं, इसलिए हम भी करेंगे!…सत्य का कोई हिसाब नहीं है–भीड़ का हिसाब है। तो यह तो भेड़चाल हुई।
सत्य की तरफ केवल वही जा सकता है जो भेड़चाल से ऊपर उठे; जो धीरे-धीरे अपने को जगाए और देखने की चेष्टा करे कि जो मैं कर रहा हूं, वह करना भी था या सिर्फ इसलिए कर रहा हूं कि और लोग कर रहे हैं!और भीड़ के साथ हम जुड़े रहते हैं–भय के कारण। अकेले होने में डर लगता है।
हिम्मत होनी चाहिए साधक में, कि वह इस पंक्ति के बाहर निकल आये। अगर उसे ठीक लगे तो बराबर करे, लेकिन ठीक लगना चाहिए स्वयं की बुद्धि को। यह उधार नहीं होना चाहिए। और अगर ठीक न लगे, तो चाहे लाख कीमत चुकानी पड़े तो भी करना नहीं चाहिए, हट जाना चाहिए। जो तुम्हारी अंतःप्रज्ञा कहे, जो तुम्हारा बोध कहे, वही तुम करना; उससे अन्यथा मत करना, अन्यथा वह लोकमूढ़ता होगी।
दूसरी मूढ़ता को उन्होंने कहा–देवमूढ़ता, कि लोग देवताओं की पूजा करते हैं। कोई इंद्र की पूजा कर रहा है कि इंद्र पानी गिरायेगा; कि कोई कालीमाता की पूजा कर रहा है कि बीमारी दूर हो जायेगी। लोग देवताओं की पूजा कर रहे हैं। देवता का अर्थ है: होंगे स्वर्ग में, सुख में होंगे, तुमसे ज्यादा सुख में होंगे; लेकिन अभी आकांक्षा से मुक्त नहीं हुए। अगर पूजना है तो उनको पूजो, जिनके जीवन से सारी आकांक्षा चली गई है। अगर पूजना है, तो उनको पूजो, जिनके जीवन से सारे मल-दोष समाप्त हो गए हैं।
दिव्यत्व की पूजा करो–देवताओं की नहीं। और दिव्यत्व कभी-कभी घटता है–उन मनीषियों में, जिनके भीतर चैतन्य सब तरह से शुद्ध और निर्विकार हुआ। ध्यान की आखिरी ऊंचाई–समाधि–समाधि की पूजा करो! पूजा की, जो परमशुद्ध हो गए!
तीसरी मूढ़ता, महावीर कहते हैं–गुरुमूढ़ता। लोग हर किसी को गुरु बना लेते हैं! जैसे बिना गुरु बनाए रहना ठीक नहीं मालूम पड़ता–गुरु तो होना ही चाहिए! तो किसी को भी गुरु बना लेते हैं। किसी से भी कान फुंकवा लिए! यह भी नहीं सोचते कि जिससे कान फुंकवा रहे हैं उसके पास कान फूंकने योग्य भी कुछ है।
गुरु को खोज लेने का अर्थ, एक ऐसे हृदय को खोज लेना है जिसके साथ तुम धड़क सको और उस लंबी अनंत की यात्रा पर जा सको।
ये तीन मूढ़ताएं हैं और इन मूढ़ताओं के कारण व्यक्ति सत्य की तरफ नहीं जा पाता।
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