सम्यक दर्शन के आठ अंग : 8. प्रभावना
प्रभावना प्रभावना का अर्थ होता है: इस भांति जीयो कि तुम्हारे जीने से धर्म की प्रभावना हो। इस ढंग से उठो-बैठो कि तुम्हारे उठने-बैठने से…
प्रभावना प्रभावना का अर्थ होता है: इस भांति जीयो कि तुम्हारे जीने से धर्म की प्रभावना हो। इस ढंग से उठो-बैठो कि तुम्हारे उठने-बैठने से…
वात्सल्य वात्सल्य का अर्थ है: तुम दो। वात्सल्य का अर्थ है: तुम दो जैसे मां देती है। तो जैसे भक्ति के रास्ते पर प्रार्थना सूत्र…
स्थिरीकरण जीवन की, सत्य की इस यात्रा में बहुत बार चूकें होंगी; बहुत बार पांव यहां-वहां पड़ जायेंगे; बहुत बार तुम भटक जाओगे। तो उसके…
उपगूहन उपगूहन का अर्थ है: अपने गुणों और दूसरों के दोषों को प्रगट न करना। यह जुगुप्सा के ठीक विपरीत है। अपने गुण प्रगट न…
अमूढ़दृष्टि दुनिया में तीन तरह की मूढ़ताएं हैं, भ्रांत दृष्टियां हैं। एक मूढ़ता को वे कहते हैं, लोकमूढ़ता। अनेक लोग अनेक कामों में लगे रहते…
निर्विचिकित्सा जुगुप्सा का अभाव। अपने दोषों को तथा दूसरों के गुणों को छिपाने का नाम है जुगुप्सा। प्रत्येक व्यक्ति उलझा है जुगुप्सा में। हम अपने…
निष्कांक्षा जो भी तुम करो सत्य की खोज में, उसमें कोई आकांक्षा मत रखना। क्योंकि आकांक्षा ही संसार है। अगर सत्य की खोज पर भी…
निःशंका… सम्यक दर्शन का पहला अंग, पहला चरण: अभय। मन में कोई शंका न हो, कोई भय न हो। साहस! क्योंकि जो साहसी हैं वे…
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